Know your Rights part - 1

          [DRx. BRAJ BHAN RATHOUR]


                   -:INTRODUCTION:-


I made a book whose name is 'KYR' [Know Your Rights]. I have only one purpose to make this book. To eliminate fear of the police from inside people because the normal person is unnecessarily afraid of the police without committing any crime because he does not know his rights. And so he is afraid of the police. And I hope you guys read this book of mine. And know your rights. 

And live without fear in society.

So,

Many thankful to all student




                          -:CONTENT:-


◆ Basic Knowledge

◆ Law 

◆ Traffic Rights

◆ Police

◆ Politics

◆ Airlines

◆ Other basic knowledge



              -:LAW [Basic knowledge]:-


1. ड्राइविंग के समय यदि आपके 100ml ब्लड में अल्कोहल का लेवल 30mg  से ज्यादा मिलता है तो पुलिस आपको विना वॉरेंट के गिरफ्तार कर सकती है।

[मोटर वाहन एक्ट 1988, सेक्शन 185,202]

2. किसी भी महिला को शाम 6 बजे के बाद और सुबह 6 बजे से  पहले गिरफ्तार नही किया जा सकता है।

आपराधिक प्रक्रिया संहिता, सेक्शन 46  

                         [Crpc 46 【4】]



3.  पुलिस अफसर FIR लिखने से मना नही कर सकते। ऐसा करने पर उन्हें 6 महीने से 1 साल तक कि जेल हो सकती है।

                             भारतीय दंड़ संहिता   [166A]

4.   कोई भी होटल चाहे बो 5 स्टार ही क्यों न हो आपको फ़्री में पानी पीने और बाशरूम का इस्तेमाल करने से नही रोक सकता है।

                  भारतीय सरिउस अधिनियम    [1887 ]        

5.  एक पुलिस अधिकारी हमेसा ही ड्यूटी पर होता है चाहे उसने यूनिफॉर्म पहनी हो या नही यदि कोई व्यक्ति इस अधिकारी से कोई शिकायत करता है। तो बह यह नही कह सकता कि वह पीडित की मदद नही कर सकता क्योंकि वह ड्यूटी पर नही है।

                                           पुलिस एक्ट [1861]

                               

6. कोई भी कंपनी गर्भवती महिला को नौकरी से नही निकाल सकती। ऐसा करने पर अधिकतम 3 साल तक की सज़ा हो सकती है।

                     मातृतव लाभ अधिनियम   [1961]

7.  टैक्स उलंघन के मामले में कर बसूली अधिकारी को आपको गिरफ्तार करने का अधिकार है। लेकिन गिरफ्तार करने से पहले उसे आपको नोटिस भेजना पड़ेगा। केबल टैक्स कमिश्नर यह फैसला करता है। कि आपको कितनी देर तक हिरासत में रहना है।

                                आयकर अधिनियम  [1961]

8. तलाक निम्न आधारो पर लिया जा सकता है। हिन्दू मैरेज के एक्ट के तहत कोई भी [पति/पत्नी] कोर्ट में तलाक के लिए अर्जी दे सकता है। ब्यभिचार [शादी के बाहर शारीरिक रिस्ता बनाना] शारिरिक व मानसिक प्रताड़ना, नपुंसकता, बिना बताए छोड़ कर जाना। हिन्दू धर्म छोड़कर कोई और धर्म अपनाना, पागलपन, लाईलाज बीमारी, वैराग्य लेने और सात साल तक कोई अता-पता ना होने के आधार पर तलाक की अर्जी दाखिल की जा सकती है।

                           हिन्दू मैरेज एक्ट की धारा - 13

9. मोटर वाहन अधिनियम की धारा 129 में बाहन चालको को हेलमेट लगाने का प्रावधान है। मोटर वाहन अधिनियम की धारा 128 में बाइक पर दो ब्यक्तियो के बैठने का प्राभदान है। लेकिन ट्रैफिक पुलिस के द्वारा गाड़ी या मोटर साइकिल से चाबी निकालना बिल्कुल ही गैर कानूनी है। इसके लिए आप चाहे तो उस कॉउंस्टेबल अधिकारी के ख़िलाफ़ कानूनी कार्यवाही भी कर सकते है।

                               [मोटर बाहन अधिनियम]


10. केबल महिला पुलिसकर्मी ही महिलाओ को गिरफ्तार कर थाने ले सकती है। पुरुष पुलिसकर्मियो को महिलाओ को गिरफ्तार करने का अधिकार नही है। इतना ही नही महिलाए शाम के 6 बजे से सुबह 6 बजे के बीच पुलिस स्टेशन जाने से मना कर सकती है। एक गंभीर अपराध के मामले में मजिस्ट्रेट से लिखित आदेश प्राप्त होने पर ही एक पुरुष पुलिसकर्मी किसी महिला को गिरफ्तार कर सकता है।

                              दंड प्रक्रिया संहिता [1973]

11.  बहुत ही कम लोग ये जानते है। की यदि उनका गैस सिलेंडर खाना बनाते समय फट जाए। तो आप जान और माल की भरपाई के लिए गैस कंपनी से 40 लाख रुपए तक की सहायता के हकदार है।

12. यदि आपका किसी दिन चालान [ बिना हेलमेट के या किसी अन्य कारण से ] काट दिया जाता है। तो फिर दुबारा उसी अपराध के लिए आपका चालान नही काटा जा सकता है।

                   मोटर वाहन [संसोधन बिधेयक 2016]

13.  कोई भी दुकानदार किसी उत्पाद के लिए उस पर अंकित अधिकतम खुदरा मूल्य से अधिक रुपए नही माग सकता है। परंतु उपभोगता अधिकतम खुदरा मुल्य से कम से कम पर उत्पाद खरीदने के लिए दुकानदार से भाव तोल कर सकता है।

 [अधिकतम खुदरा मूल्य अधिनियम  2014]

14.  यदि आपका आफिस आपको सैलरी नही देता है। तो आप उसके खिलाफ 3 साल के अंदर कभी भी रिपोट दर्ज करा सकते है। 

                            [ परिसीमा अधिनियम 1963]

15.  यदि आप सार्वजनिक जगहों पर अश्लील गतिबिधि में संलिप्त पाए जाते है। तो आपको 3 महीने तक की कैद भी हो सकती है। परंतु अश्लील गतिबिधि की कोई स्पस्ट परिभाषा नही होने के कारण पुलिस इस कानून का दुरुपयोग करती है।

                    [भारतीय दंड संहिता की धारा  294]

16.  कोई भी शादीसुदा ब्यक्ति किसी अभिभाहीत लड़की या विधबा महिला से उसकी सहमति से शारारिक संबंध बनाते है। तो यह अपराध की श्रेणी में नही आता है।

           [भारतीय दंड संहिता ब्याभिचार धारा   498]

17. यदि दो बयस्क लड़का या लड़की अपनी मर्ज़ी से लिव-इन  रिलेशनशिप में रहना चाहते है। तो यह गैर कानूनी नही है। और तो और इन दोनों से पैदा होने बाली सन्तान भी गैर कानूनी नही है। और संतान को अपने पिता की संपत्ति में हक़ भी मिलेगा।

                             [घरेलू हिंसा अधिनियम  2005]


                -:गिरफ़्तारी पर आपके अधिकार:-


1.  गिरफ्तारी का कारण जानने का अधिकार  

                                                [CRPC 50(1)]

2.  महिला को सिर्फ महिला पुलिस ही गिरफ्तार करेगी।                                                  [CRPC 46(1)]

3.  महिला को सूर्यास्त के बाद और सूर्यादय से पहले गिरफ्तार नही किया जाएगा।

                                               [CRPC 46(4)]

4.  Non-congnizable offence के मामलों में वारंट देखने का अधिकार।

5.  Arrest memo बनबाने का अधिकार 

                                                   [CRPC 41b]

6.  पुलिस को अरेस्ट किये गए पर्सन की family or relationship को सूचना देनी होगी।

                                                   [CRPC 50A]

7.  गिरफ्तार किए गए पर्सन की हैल्थ और सुरक्षा का ध्यान रखना।    

                                                   [CRPC 55A]

8.  इंटोरोगेशन के दौरान अपने बकील से मिलने का अधिकार      

                                                   [CRPC 41D]

9.  चौबीस घंटे से अधिक हिरासत नही 

                                                      [CRPC 57]

10. 24 घंटे के अंदर मैजिस्ट्रेट के सामने पेशी ।

                                                     [CRPC 56]

11.  मेडिकल टेस्ट करना।।              

                                                    [CRPC 54] 


                           -:FIR क्या है:-

              [First information report]

FIR को हिंदी में हम प्रथम सूचना विवरण कहते है। ये पुलिस द्वारा लिखा गया एक Document होता है। जिसे कोई व्यक्ति सामान चोरी होने पर या किसी क्राइम की जानकारी देने के लिए लिखबा सकता है। जब कोई व्यक्ति द्वारा क्राइम चोरी या अन्य मामलों से संबंधित पुलिस को FIR लिखवाया जाता है। तो पुलिस उसकी एक कॉपी अपनी मुहर और थानाध्यक्ष की Signature  के साथ शिकायत करता को भी देती है। साथ ही FIR की कॉपी देने से पहले आपने क्या लिखवाया है। ये पुलिस आपको पढ़कर सुनाती है।


                      -:ZERO FIR क्या है:-


ZERO FIR उसे कहते है। जब कोई महिला उसके विरुद्ध हुए संज्ञेय अपराध के बारे में घटनास्थल से बाहर के पुलिस थाने में प्राथमिक दर्ज करबाए। इसमे घटना की अपराध संख्या दर्ज नही की जाती है। हमारे देश की न्याय व्यबस्था के अनुसार संगेय अपराध होने की दशा में घटना की FIR किसी भी जिले में दर्ज कराई जा सकती है।


                  -:सम्मन और वॉरन्ट क्या है:-

सम्मन :- 

              जब अदालत में किसी आरोपी के खिलाफ केस चलता है। और आरोपी को कोर्ट में पेश होने के लिए कहा जाता है। तो इसे अदालत की भाषा मे सम्मन कहते है। दूसरे शब्दों में कहे तो सम्मन एक कानूनी नोटिस है। जो सिविल और आपराधिक मामलों में जारी किया जाता है। सम्मन में अदालत किसी आरोपी को व्यक्तिगत रूप से पेश होने के लिए कहती है।

वॉरन्ट :-

              वॉरन्ट न्यायालय को प्राप्त ऐसी शक्ति है। जो ब्यक्ति को गिरफ्तार कर न्यायालय के समक्ष लाये जाने का प्रावधान करती है। वॉरन्ट के बगैर न्यायालय को अपंग माना जा सकता है।

भारतीय दंड संहिता वॉरन्ट के माध्य्म से न्यायालय को बह अस्त्र प्रदान करती है। जिसके सामने बड़ी - बड़ी शक्तियों को पस्त किया जा सकता है। न्यायधीश और मजिस्ट्रेट को प्राप्त वॉरन्ट जारी करने की शक्ति न्यायधीश को प्राप्त शक्तियो में सर्बाधिक सार्थक शक्ति है।

सब्रप्रथम तो न्यायालय जिस ब्यक्ति को हाज़िर करवाना चाहता है। उस ब्यक्ति को सम्मन जारी करता है। परंतु यदि ब्यक्ति सम्म न से बच रहा है। और सम्मन तामिल होने के उपरान्त भी न्यायालय के समक्ष हाज़िर नही होता है। और न्याय में बाधा बनता है। तो ऐसी परिस्थिति में न्यायालय को गिरफ्तार करके अपने समक्ष पेश किए जाने का वॉरेंट जारी करता है।


                         -:वॉरन्ट के प्रकार:-

1. जमानतीय वॉरन्ट

2. गैर जमानतीय वॉरन्ट


1. जमानतीय वॉरन्ट : -

                             जमानतीय वॉरन्ट बह वॉरन्ट है। जिसमे न्यायालय जिस व्यक्ति को वॉरन्ट निर्देशित करती है। बह ब्यक्ती बंधपत्र पर जमानत लेकर नियत तारीख को न्यायालय के समय उपस्थित होने का निर्देश मात्र उस ब्यक्ति को दे देता है। जिस ब्यक्ति को न्यायालय ने वॉरन्ट जारी किया है।


2. गैर जमानतीय वॉरन्ट : -

                                   गैर जमानतीय वॉरन्ट किसी ब्यक्ति को गिरफ्तार करने के लिए न्यायालय द्वारा जारी वॉरन्ट है। इस मामले में पुलिस अधिकारी जमानत देने के लिए प्राधिकृत नही है। जमानत प्राप्त करने के लिए गिरफ्तार ब्यक्ति को सम्बद्ध न्यायालय में आबेदन करना होगा। इसे ही हम गैर जमानतीय वॉरन्ट कहते है।


               -:जज और मजिस्ट्रेट में अंतर:-


मजिस्ट्रेट :-

              [A] बह राजकीय अधिकारी जिसके सामने आपराधिक अभियोग आदि। बिचार और निर्णय के लिए उपस्थित किये जाते है। और जो शासन प्रबंध के भी कुछ कार्य करता है।

[B]  फ़ौजिदारी अदालत का अफसर।


जज :- 

           न्यायधीश जिसका मतलब होता है। निर्णय लेने बाला यह अदालत की कार्यबाही का पालन करते है। और उसके तहत मामले के विभिन्न तथ्यो और विवरणों पर बिचार करके कानूनी मामलों पर सुनवाई और निर्णय लेते है। कानून में एक न्यायधीश को न्यायिक अधिकारी के रूप में वर्णित किया गया है।


               -:शपथ पत्र [Affidavit]:-

किसी भी व्यक्ति या कंपनी द्वारा लिखित रूप में किसी कार्य को करने अथवा न करने की स्वेच्छा से ली गयी तात्यात्मक घोषणा को  Affidavit या हलफनामा भी कहते है।


                  -:कोर्ट में गीता की सौगंध:-

गीता में श्री कृष्ण ने जो ज्ञान अर्जुन को दिया था। उसी से प्रेरित होकर आज तक अदालतों में गीता की सौगंध दिलवाकर गवाह को गवाही देने की अनुमति दी जाती है। इसके पीछे यही भावना होगी। जिस प्रकार श्री कृष्ण गीता पर हाथ रखकर यह कहने से की मैं गीता पर हाथ रखकर ये सौगंध खाता हूं। जो कहूँगा। सच कहूँगा। सच के अलाबा और कुछ नही कहूँगा। ब्यक्ति का मन निर्मल हो जाएगा।

उसे भी जीवन की बातों का ज्ञान हो जाएगा। अर्जुन की तरह बह भी फ़ल की चिंता छोडकर सिर्फ और सिर्फ अपने कर्तव्यों का पालन करने हेतु सच बोलेगा।


                -:वक़ील क्यो पहनते है काला कोट:-

वर्ष 1694 में   ब्रिटेन की महारानी क्वीन  मैरी की चेचक से मृत्यु हो गयी। जिसके बाद उनके पति राजा विलियम्स ने सभी न्यायधीशो और वकीलो को सार्बजनिक रूप से शोक मनाने के लिए काले गाउन पहनकर इकठ्ठा होने का आदेश दिया। इस आदेश को कभी भी रद्द नही किया गया। जिसके बाद से आज तक यह प्रथा चली आ रही है। कि वकील काला गाउन पहनते है। अब तो काला कोट वकीलो की पहचान बन गया है। अधिनियम 1961 के तहत अदालतों में सफेद बैंड टाई के साथ काला कोट पहन कर आना अनिवार्य कर दिया गया था। ऐसा माना जाता है। कि यह काला कोट और सफेद शर्ट वकीलो में अनुशासन लाता है। और उनमें न्याय के प्रति विश्वास जगाता है।

 

           -:Lawyer और Advocate मे अंतर:-


Lawyer :- 

                    Lawyer उस ब्यक्ति को कहा जाता है। जो अभी भी कानून/L.L.B की पढ़ाई करने में लगा है। इस ब्यक्ति के पास अदालत में केस लड़ने के लिए अनुमति नही होती है। क्योंकि बिना पूरी पढ़ाई किये वकालत करने के लिए ragistration नही कराया जा सकता।

Advocate :- 

                   एडवोकेट आमतौर पर एक वकील को ही कहा जाता है। यह बह ब्यक्ति होता है। जिसने कानून की पढ़ाई पूरी कर ली। होती है। और वह किसी न्यायालय के वकील के तौर पर प्रैक्टिस कर रहा होता है। 

अर्थात, एक एडवोकेट बह ब्यक्ति होता है। जिसका विद्यारथी जीवन खत्म हो चुका होता है। एडवोकेट को स्कोटिस और दछिण अफ्रीका में वैरिस्टर कहा जाता है। 


           -:सुप्रीम कोर्ट और हाइकोर्ट में अंतर:-


उच्च न्यायालय [हाई कोर्ट] और सर्वोच्च न्यायालय [सुप्रीम कोर्ट] के बीच एक बड़ा अंतर यह है। कि किसी भी हाई कोर्ट द्वारा दिये गए निर्णय की समीक्षा सुप्रीम कोर्ट में कि जा सकती है। और इस समीक्षा के तहत हाई कोर्ट का फैसला यथास्तव रखा जा सकता है। या बदला भी जा सकता है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट का निर्णय अंतिम और वाध्यकारी है। इसीलिए किसी भी मामले में दिए गए निर्णय की समीक्षा नही होती है। और उस निर्णय को हाई कोर्ट में चेंज नही किया जा सकता है। उच्च न्यायालय किसी भी राज्य की सर्वोच्च निकाय है। जो राज्य के मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता में राज्य के प्रशासन को नियंत्रित करता है। 

परंतु सुप्रीम कोर्ट देश मे न्याय की प्राथमिक अदालत है। जिसकी अध्यक्षता भारत के मुख्य न्यायाधीश करते है। हमारे देश मे केवल 1 ही सुप्रीम कोर्ट है। हालांकि 24 हाई कोर्ट है। पूरे देश मे। हाई कोर्ट का न्यायधीश 62 वर्ष की आयु के बाद रिटायर होता है।

  जबकि सुप्रीम कोर्ट का न्यायधीश 65 वर्ष की आयु में रिटायर होता है। हाई कोर्ट में कुल प्रस्तावित 749 न्यायाधीश होते है। जबकि सुप्रीम कोर्ट में एक मुख्य न्यायाधीश और 30 अन्य न्यायाधीश होते है। भारत की सुप्रीम कोर्ट अपील के लिए सबसे ऊपरी अदालत और अंतिम विकल्प है। इस प्रकार यह अदालत किसी भी भारतीय नागरिक के लिए कानूनी राहत के मामले में सबसे उच्चतम है।  

जहां तक हाई कोर्ट के मामलों का सबाल है। उसे कुछ मामलों में सीधी सुनवाई और फैसले लेने का अधिकार है। इसे प्रारंभिक छेत्राधिकार कहते है।  सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय में एक और यह भी फ़र्क है। कि भारतीय संविधान की समीक्षा करने का अधिकार सिर्फ सर्वोच्च न्यायालय के पास है।  यह सबसे बड़ा अधिकार है। क्योंकि सारे देश की नींव ही संविधान के ऊपर रखी गई हैं। 


                    -:आजीवन कारावास:-


उच्चतम न्यायालय ने अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है। कि आजीवन कारावास का मतलब दोसी की जिंदगी समाप्त होने तक जेल में रहने से है।  और इसका मतलब केवल 14 या 20 साल जेल में बिताना नही है।  जोकि एक गलत धारणा है।


                        -:Self-Defense:- 


कोई भी ब्यक्ती स्वयं की जान वा माल की रक्षा करने के लिए किसी को रोके व कोई भी साधन उपयोग करके उससे अपनी जान व माल की रक्षा करे। वह आत्मरक्षा होती है। ब्यक्ति स्वयं की संपत्ति की रक्षा किसी भी चोरी, डकैती, शरारत, व आपराधिक अतिचार के खिलाफ कर सकता है। ऐसा वह ब्यक्ति किसी दूसरे की जान बचाने के लिए नही। ऐसे में अगर किसी ब्यक्ति की मृत्यु भी हो जाती है। तो वो आत्मरक्षा में आता है।


           -:आत्मरक्षा के अधिकारो के सिद्धांत:-


[A] :- आत्मरक्षा का अधिकार रक्षा या आत्मसुरक्षा का अधिकार है। इसका मतलब प्रतिरोध या सज़ा नही है।

[B] :- आत्मरक्षा के दौरान चोट जितनी जरूरी हो उससे ज्यादा नही होनी चाहिए। 

[C] :-  ये अधिकार सिर्फ तभी तक ही उपलब्ध है। जब तक कि शरीर अथवा संपत्ति को खतरे की उचित आशंका हो या जब खतरा सामने हो या होने वाला हो।

हत्या के मामले में कई बार ऐसी परिस्थति हो जाती है। कि आत्मरक्षा के लिए किसी व्यक्ति से हत्या भी हो जाती है। इसके लिए पर्याप्त कारण होना जरूरी है पर कई बार बिना चोट लगे व किसी के हमले किये विना भी हत्या हो सकती है। 


            -:अनुच्छेद और धारा में क्या अन्तर है:-


 1. अनुच्छेद [Articles] : - 

                                           एक Legal Document जिसे हम एक्ट या अधिनियम भी कहते है। इसमें रखी गयी कोई भी बात को कहानी के रूप में न ब्यक्त करते हुए चेप्टर के अंदर पार्ट्स या पार्ट्स के अंदर के चेप्टर के रूप में ब्यक्त किया जाता है। जिसके जरिये एक टॉपिक को दूसरे टॉपिक से अलग रखा जा सके। और जब किसी टॉपिक को पार्ट या चेप्टर में विभाजित कर दिया जाता है। और उसी टॉपिक से जुड़ी बातो को उस चेप्टर या पार्ट्स में रखा जाता है। जिन्हें पैराग्राफ में विभाजित किया गया था। इन्ही पैराग्राफ को लीगल भाषा मे provision कहा जाता है। प्रत्येक provision को sequence के अनुसार एक नंबर दिया जाता है।

जैसे : - 

              1,2 आदि और जब इन प्रोविजन को उसके नाम से पढ़ा जाता है तो वो Article या अनुच्छेद कहलाते है।                          


2. धारा [Section] : - 

                                  Section अर्थात धारा का कार्य भी लगभग अनुच्छेद के समान है। ये भी विभाजन का कार्य करती है। जहाँ अनुच्छेद अर्थात आर्टिकल वे नियम होते है। जिनसे मिलकर भारतीय दंड संहिता का निर्माण हुआ है। लेकिन इसका ये अर्थ नही है। कि भारतीय दंड संहिता अर्थात एक्ट में अनुच्छेद नही हो सकते या संविधान में धारा नही हो सकती। दोनों ही विभाजन के साथ - साथ अपने कुछ और भी महत्व रखते है।


               -:अनुच्छेद और धारा में अन्तर:-

अनुच्छेद वे नियम है। जिनसे भारत का संविधान बना है। जबकि धारा वे नियम है। जिनसे भारतीय दंड संहिता का निर्माण हुआ है। दोनों का कार्य किसी भी Topic के पार्ट्स में पैराग्राफ के रूप में provision को व्यक्त करना है। जिसमे आमतौर पर भारतीय दंड संहिता के  Document में धारा और संविधान में अनुच्छेद होते है। अनुच्छेद को Article और धारा को Section के नाम से जाना जाता है।


                -:IPC और CRPC में अन्तर:-


● IPC [Indian penal code] : -

                                                     भारतीय दंड संहिता को Indian Penal Code भारतीय दंड विधान और उर्दू में ताज इरात - ए - हिन्द भी कहते है। जो कि 1860 में बना था। आपने फिल्मों में देखा होगा की कोर्ट में जज जब सज़ा सुनाते है। तो कहते है कि ताज इरात - ए - हिन्द दफा 302 के तहत मौत की सज़ा दी जाती है। ये और कुछ नही बल्कि भारतीय दंड संहिता है और दफा धारा का Section है।    

 IPC को लागू करने का मुख्य उद्देश्य था। कि सम्पूर्ण भारत मे एक ही तरह के कानून को लागू किया जा सके। ताकि अलग- अलग छेत्रीय कानूनों की जगह एक ही कोड हो।  IPC कानून अपराधों के बारे में बताता है। और उनमें से प्रत्येक के लिए क्या सज़ा होगी। और जुर्माने की भी जानकारी देता है।


                            -:CRPC:- 

        [Code of criminal procedure]  

CRPC को हिंदी में दंड प्रक्रिया संहिता कहते है। यह कानून सन 1973 में पारित हुआ। और अप्रैल 1974 से लागू हुआ था। किसी भी प्रकार के अपराध होने के बाद दो तरह की प्रक्रियाएं होती है। जिसे पुलिस किसी अपराधी की जाँच करने के लिए अपमानित है। एक प्रक्रिया पीडित के संबंध में और दूसरी आरोपी के संबंध में होती है। इन्ही प्रक्रियाओं के बारे में बताया गया है। दंड प्रक्रिया संहिता को मसीनरी के रूप में भी वर्णित किया जा सकता है। जो मुख्य आपराधिक कानून IPC के लिए एक तंत्र प्रदान करता है।

                                 अगर कोई चोरी करता है। तो IPC के Section 379 के तहत 3 साल का कारावास और जुर्माना हो सकता है। लेकिन अगर किसी घर मे या बिल्डिंग में या किसी परिसर में चोरी होती है। तो  IPC  की धारा 380 के तहत 7 साल का कारावास हो सकता है।

CRPC में जाँच, परीक्षण, जमानत, पूछ्ताछ, गिरफ्तारी आदि के लिए CRPC पूरी प्रक्रिया का वर्णन करता है।


-:संज्ञेय अपराध और असंज्ञेय अपराध में क्या अन्तर है:-


◆ संज्ञेय अपराध [Cognizable offense] : - 

★ संज्ञेय अपराध गंभीर प्रकृति के अपराधों की श्रेणी में आते है।  

 ★भारतीय दंड संहिता की धारा 302 हत्या।

 ★भारतीय दंड संहिता की धारा 304b दहेज मृत्यु।

 ★भारतीय दंड संहिता की धारा 376 बलात्कार।

 ★भारतीय दंड संहिता की धारा 379 चोरी।


◆ संज्ञेय अपराधो में अधिक सज़ा का प्रावधान है।

                           अर्थात,     

★ कुछ अपबादो के अलाबा संज्ञेय अपराध में 3 साल या 3 साल से अधिक कारावास का प्रावधान है। 

★ संज्ञेय अपराधो के मामलों में पुलिस को पूरा अधिकार है। कि वह अपराधी अभियुक्त को विना किसी वॉरन्ट के गिरफ्तार कर सकती है। 

★ संज्ञेय अपराधो के मामलों में पुलिस को यह पूरा अधिकार है। कि वह संज्ञेय मामलो में मजिस्ट्रेट के आदेश के बिना ही मामलो की जांच कर सकते है। 

★ संज्ञेय अपराधो के मामलो में अपराध की कार्यवाही करने के लिए शिकायत नही करनी पड़ती। 


◆असंज्ञेय अपराध[Non cognizable offense]-  


 ★असंज्ञेय अपराध गंभीर प्रकृति के अपराधों की श्रेणी में न आकर ये सामान्य प्रकृति के होते है।

 ★भारतीय दंड संहिता की धारा 193 झूठे साछय देना। 

 ★भारतीय दंड संहिता की धारा 323 स्वेच्छा उपहति करीत करना।

 ★भारतीय दंड संहिता की धारा 352 आक्रमण आपराधिक बल प्रयोग करने के लिए दंड।

 ★भारतीय दंड संहिता की धारा 417 छल के लिए दंड।

 ★ असंज्ञेय अपराधो में कम सजा का प्रावधान है। कुछ अपबादो के अलाबा 3 साल से कम कारावास का प्रावधान है।

  ★असंज्ञेय अपराधो के मामलों में पुलिस अपराधी/अभियुक्त को बिना वॉरन्ट के गिरफ्तार नही कर सकती।

  ★असंज्ञेय अपराधो के मामलों में पुलिस मजिस्ट्रेट के आदेश के विना जाँच नही कर सकते है।

  ★असंज्ञेय अपराधों के मामलों में अपराध की कार्यवाही शिकायत से ही शुरु होती है।



                     -:All Sections:- 

[IPC,  CRPC,  NIA,  HMA,  IEA,  JJA]

● IPC [Indian penal code (1860)]

Section in IPC [576 - Total]

●  CRPC [Code of criminal procedure (1973)]

Section in CRPC [528 - Total]


        -:All section explain in detail:-


(1)  धारा [Section 307] हत्या का प्रयास : - 

जब कोई व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति की हत्या की कोशिश करता है। और वह हत्या करने में नाकाम रहता है। यानी जिस ब्यक्ति पर हमला हुआ है। उसकी जान नही जाती तो ऐसा अपराध करने बाले को IPC की धारा 307 के तहत सजा दिए जाने का प्रावधान है।                     ★Section 300 [Murder] 

       ★ Section 302 [punished of murder]


(2) Section 302 [हत्या के लिए सज़ा] : - 

कत्ल के आरोपियों पर धारा 302 लगाई जाती है। अगर किसी पर कत्ल का दोष सावित हो जाता है। तो उम्रकैद या फाँसी की सजा और जुर्माना हो सकता है।

(3) Section 304 [A] [लापरवाही  से मृत्यु होने के कारण] : -   

IPC कि धारा 304 [A] उन लोगो पर लगाई जाती है। जिनकी लापरवाही की बजह से किसी की जान जाती है। इसके तहत दो साल तक कि सजा या जुर्माना या दोनों हो सकते है। सड़क दुर्घटना के मामलों में किसी की मौत हो जाने पर अक्सर इस धारा का इस्तेमाल होता है।

(4)  Section 376 [बलात्कार] : - 

महिला के साथ जबरन सेक्स या बलात्कार की गंभीर श्रेणी में गिना जाता है। बलात्कार के अपराधी पर संगीन धारा 376 के तहत मुकदमा दर्ज किया जाता है।


(5)  Section 395 [डकैती] : - 

IPC की धारा 395 डकैती के लिए लगती है। जब लूटपाट 4 या 4 से काम लोग करते है। तो उनपर धारा 392 [लूट के लिए सज़ा] लगती है। लेकिन लूटपाट अगर 4 से ज्यादा लोग करे तो उसको डकैती कहा जाता है।

(6) Section 377 [अप्राकृतिक अपराध : -  

जो कोई किसी पुरूष स्त्री या जीवजन्तु के साथ प्रकृति की व्यवस्था के विरुद्ध स्वेच्छया इन्द्रीयभोग करेगा। वह आजीवन कारावास से या दोनों में से किसी भाँति के कारावास से जिसकी अवधि दस वर्ष तक कि हो सकेगी। दंडित किया जाएगा। और जुर्माने से भी दण्डित होगा। 

(7)  Section 396 [हत्या सहित डकैती] : -  

यदि ऐसे पाँच या अधिक व्यक्तियों में से जो संयुक्त होकर डकैती कर रहे है। कोई एक व्यक्ति इस प्रकार डकैती करने में हत्या कर देगा। तो उन व्यक्तियों में से हर व्यक्ति मृत्यु से या आजीवन कारावास से या कठिन कारावास से जिसकी अवधि दस वर्ष तक कि हो सकेगी। दंडित किया जाएगा। और जुर्माने से भी दंडनीय होगा।

(8)   Section 365 [व्ययहरण या अपहरण] : -  

जो कोई इस आशय से किसी व्यक्ति का व्ययहरण या अपहरण करेगा। कि उसका गुप्त रीति से और सदोष परिरोध किया जाए। वह दोनों में से किसी भाँति के कारावास से जिनकी अवधि 7 वर्ष तक कि हो सकेगी। दंडित किया जाएगा। और जुर्माने से भी दंडनीय होगा।

(9)   Section  [201] : -

अपराधी के साछय के लापता होने या अपराधी पर झूठी जानकारी देने के कारण। 

(10)  Section [34] :-

सामान्य आशय को अग्रसर करने में कई व्यक्तियों द्वारा किये गए कार्य। 

(11)  Section [141] : -

विधिविरुद्ध जमाव पाँच या अधिक व्यक्तियों का जमाव विधिविरुद्ध जमाव कहा जाता है।

(12)  Section [412] : -

ऐसी संपत्ति को वैईमानी से प्राप्त करना। जो डकैती करने में चुराई गयी है।

(13)  Section [378]

चोरी  [Theft] 

(14)  Section [309]

आत्महत्या करने का प्रयत्न।

(15)  Section [310]

जो कोई व्यक्ति ठगी करते हुए पकड़े जाते है। वो व्यक्ति इस धारा के अंतर्गत दंडित किया जाता है।

  

 (16)  Section 191 [मिथ्या साछय देना] : -  

जो कोई शपथ द्वारा या विधि के किसी अभिव्यक्त उपबन्ध द्वारा सत्य कथन करने के लिए वैध रूप से आबद्ध होते हुए। या किसी विषय पर घोषणा करने के लिए। विधि द्वारा आबद्ध होते हुए ऐसा कोई कथन करेगा। जो मिथ्या है। और या तो जिसके मिथ्या होने का उसे ज्ञान या विश्वास है। या जिसके सत्य होने का उसे विश्वास नही है। वह मिथ्या साछय कहा जाता है।

(17)  Section  [144] : - 

जिस इलाके में धारा 144 लागू होती है। वहाँ चार या उससे ज्यादा लोग इकट्ठे नही हो सकते। और उस छेत्र में पुलिस और सुरक्षावलों को छोड़कर किसी को भी हथियार लाने या ले जाने पर रोक लग जाती है। लोगो का बाहर से घूमना प्रतिवन्धित हो जाता है। और यातायात को भी धारा 144 लगे रहने तक रोक दिया जाता है।

(18)   Section 506 [धमकाना] : -   

जो कोई भी आपराधिक धमकी का अपराध करता है। तो उसे किसी एक अबधि के लिए।  कारावास जिसे 2 साल तक बढाया जा सकता है। या आर्थिक दंड या फिर दोनों से दंडित किया जा सकता है।



                     -:Articles  21:-

          -:Couples के मौलिक अधिकार:-


◆ पुलिस के कानूनी अधिकार : - 

IPC की धारा - 294 के तहत अगर कोई Couples पब्लिक प्लेस में कोई अश्लील हरकत करता है। जिसे की कानून में define किया गया है। या किसी व्यक्ति की feeling उस हरकत के कारण हर्ट हुई है। और वो शिकायत करता है। और पुलिस को भी लगता है। कि उस couples की हरकत कानून में अश्लीलता के दायरे में आती है। तो पुलिस उस couples को IPC की धारा 294 के तहत गिरफ्तार कर सकती है। 

इसमें 3 महीने की सजा व जुर्माने का भी प्रावधान है। वैसे तो धारा 292 से 294 तक कि धाराओ में अश्लीलता के बारे में ही प्रावधान है। इसके अंतर्गत धारा 294 ही आती है।


            -:Couples के कानूनी अधिकार : -


कानून में कही भी इस बात का जिक्र नही है। कि अगर कोई couple पार्क या किसी पब्लिक प्लेस में साथ - साथ घूम रहे हो। या फिर वैठे हो और एक दूसरे से वातचीत में मशगूल है। तो पुलिस यह आधार बनाकर कि वे गलत हरकत कर सकते है। सिर्फ इस आधार पर कोई कानूनी कार्यवाही नही कर सकती है।

भारत के हर नागरिक को संविधान के अंतर्गत  [Life and liberty] का अधिकार है। जो कि संविधान के Artical 21 से मिलता है। ये Artical सभी नागरिकों को समान रूप से जीने का व पब्लिक प्लेस में आने व जाने का अधिकार देता है। इसका मतलब साफ है। कि हर शख्स को यह अधिकार है कि वह अपनी मर्ज़ी से ज़िन्दगी गुज़ारे। Couple जो बालिग है मतलब 18 वर्ष या उससे ऊपर है अपनी मर्ज़ी से एक साथ घूम सकते है, रह सकते है,और चाहे तो शादी भी कर सकते है। इस मामले में पुलिस को कोई अधिकार नही है। कि उनको परेशान करे। लेकिन पुलिस को यह अधिकार है। कि अगर कोई शख्स गलत हरकत करता दिखे तो वह उसके खिलाफ कार्यवाही कर सकती है।


             -:Order's of Court:-

पुलिस ने जब इस अधिकार का फायदा उठा कर couples से पैसा लेना शुरू कर दिया। जिसका नतीजा ये हुआ कि साधारण जनता भी पार्क में जाने से डरने लगी थी। तब कोर्ट में कुछ केस भी आये तो दिल्ली हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट और बाद में कई और स्टेटो के हाई कोर्ट ने भी ये निर्णय लिया। की IPC की धारा - 294 के तहत पुलिस किसी भी प्रकार की कानूनी कार्यवाही Couples के खिलाफ सिर्फ शिकायत मिलने पर ही करेगी। अन्यथा नही। अगर कोई couples पार्क में गले मिल रहे है। और उससे किसी अन्य व्यक्ति को  कोई शिकायत नही है। तो पुलिस को कार्यवाही करने का अधिकार नही है। 

पुलिस सिर्फ किसी की शिकायत पर ही कानूनी कार्यवाही करें। इसके अलावा अगर कोई Couples किसी भी प्रकार की शिकायत करे तो पुलिस उस पर ध्यान दे।

   

           -:Court के आदेश का परिणाम:-

वैसे तो ये order कोर्ट ने इसलिए दिया था। कि पुलिस पब्लिक को न लूटे व परेशान करे। लेकिन इसका परिणाम ये हुआ कि लोगो ने पार्को में अश्लीलता फैलानी शुरू कर दी। अगर कोई व्यक्ति शिकायत करे तो लड़कियां उस पर धारा 354 छेड़खानी का आरोप लगाने की धमकी देती है। 


-:क्या किसी Club या Party में गले मिलना या kiss करना भी अपराध है:-


जी नही कोई party,club, restaurant या फिर कोई और ऐसी जगह जहाँ आप कोई सुविधा पैसे देकर लेते है। या वो जगह सरकारी नही है। ऐसी जगह पर आप अगर couples गले मिलते है। तो वो गलत वात नही है। और न ही IPC की धारा 294 के अंतर्गत आती है।


-:अगर पुलिस couples को परेशान करे तो क्या करे:-


अगर कोई पुलिस ऑफिसर आपको पार्क में बैठें हुए विना किसी व्यक्ति की शिकायत के गले मिलते हुए प्रेषण करे तो आप उसी समय 100 पर call कर सकते है या फिर उस के खिलाफ किसी बड़े अधिकारी को शिकायत कर सकते है या फिर कोर्ट में केस डाल कर उस पुलिस ऑफिसर के खिलाफ कानूनी कार्यवाही के अलावा मुआवजे की भी माँग कर सकते है।


         -:होटल में Couples के अधिकार:-


Article 21 के तहत कोर्ट के सीनियर Advocate विनय कुमार गर्ग का कहना है। कि unmarried couples को एक साथ होटल में रहने और आपसी सहमति से शारीरिक संबंध बनाने का मौलिक अधिकार है। हालांकि दोनों का बालिग होना जरूरी है। सुप्रीम कोर्ट साफ कह चुका है  कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मिले मौलिक अधिकार में अपनी मर्ज़ी से किसी के साथ रहने का अधिकार भी आता है।


                 -:लिव - इन रिलेशनशिप:- 


कानून के अनुसार जो जोड़े विवाह के लिए सछम है। लेकिन फिर भी बिना विवाह के साथ रह रहे है। इसे ही लिव- इन रिलेशनशिप कहा जाता है। बस वे नाबालिक न हो मानशिक रूप से अस्थिर न हो, न किसी और से विवाहित हो न तलाकसुदा हो। जब ये दोनों अनेक वर्षों तक एक दूसरे के साथ रहते है। तभी इसे लिव- इन रिलेशनशिप माना जाता है। 


-:Unmarried couples को होटल से गिरफ्तार नही कर सकती पुलिस:- 


अगर आप अपनी girlfriend के साथ किसी होटल में ठहरे है। और पुलिस पूछताछ करने आती है। तो घबराने की जरूरत नही है।  Unmarried couples का होटल में एक साथ रहना कोई जुर्म नही है। लिहाज़ा पुलिस को होटल में ठहरे किसी Unmarried couple को परेशान करने या गिरफ्तार करने का कोई अधिकार नही है।  

कोर्ट के सीनियर एडवोकेट विनय कुमार गर्ग का कहना है। कि Unmarried couples को एक साथ होटल में रहने और आपसी सहमति से शारिरिक संबंध बनाने का मौलिक अधिकार है। हालांकि इसके लिए शर्त यह है कि दोनों बालिग हो। सुप्रीम कोर्ट साफ कह चुका है। कि संविधान के अनुछेद 21 के तहत मिले मौलिक अधिकार में अपनी मर्ज़ी से किसी के साथ रहने और शारिरिक संबंध बनाने का अधिकार भी आता है। इसके लिए शादी के बंधन में बंधना जरूरी नही है।

इसका मतलब यह हुआ कि अगर कोई couple विना शादी के किसी होटल में एक साथ  रहते है। तो यह उनका मौलिक अधिकार है। सीनियर एडवोकेट विनय कुमार गर्ग का कहना है। कि अगर होटल में ठहरने के दौरान Unmarried couples को पुलिस परेशान करती है। या फिर गिरफ्तार करती है। तो यह उनके मौलिक अधिकारो का हनन माना जायेगा। पुलिस की इस कार्यवाही के खिलाफ Couple संविधान के Article 32 के तहत सीधे सुप्रीम कोर्ट या Article 226 के तहत सीधे हाई कोर्ट का दरबाजा खटखटा सकते है।


            -:Court marriage rules:-


कोर्ट marriage की प्रक्रिया पूरे भारत मे समान है। इसे संभव बनाकर विशेष विवाह अधिनियम 1954 के अंतर्गत शाषित किया गया है। इस अधिनियम द्वारा विभिन्न धर्म के स्त्री पुरूष भी रस्मो रिबाज़ों के बदले कोर्ट marriage का चुनाव कर सकते है। 


    -:Court marriage condition in 2020:-


●  कोई पूर्वे विवाह न हो : -  विवाह में शामिल होने वाले दोनों पछो की पहली शादी से जुड़े पति या पत्नी जीवित न हो साथ ही कोई पूर्व विवाह वैध न हो।

● वैध सहमति : -  दोनों पक्ष वैध सहमति देने के लिए सक्षम होने चाहिए। अपने मन की बात कहकर दोनों पक्षों को स्वेच्छा से इस विवाह में शामिल होना चाहिए।

 ●   उम्र : -  कोर्ट marriage करने की उम्र 2020 में पुरूष की उम्र 21 वर्ष से ज्यादा तथा महिला की 18 वर्ष से ज्यादा होना जरूरी है।

●  प्रसव के लिए योग्य : -  दोनों पक्षों का संतान की उत्पत्ति के लिए शारिरिक रूप से योग्य होना जरुरी है। 

●   निसिद्ध संबंध : -  अनुसूची 1 के अनुसार दोनों पक्षों का निषिद्ध संबंधो की सीमा से बाहर होना जरूरी है। हालांकि किसी एक के धर्म की परंपराओं में इसकी अनुमति हो तो यह विवाह मान्य होगा। 


       -:Court marriage procedure:- 


Step - 1 :- 

 कोर्ट में विवाह करने के लिए सर्वप्रथम जिले के विवाह अधिकारी को सूचना/आवेदन किया जाता है।

●  विवाह में शामिल होने वाले पछो द्वारा लिखित सूचना दी जानी चाहिए।

 ●  सूचना उस जिले के विवाह अधिकारी को दी जाएगी। जिसमें कम से कम एक पछ ने सूचना की तारीख से एक महीने पहले तक शहर में निवास किया हो।

उदाहरण के तौर पर यदि पुरूष और महिला दिल्ली में है। और मुंबई में विवाह करना चाहते है। तो उनमें से किसी एक को सूचना की तारीख से 30 दिन पहले मुंबई में निवास करना अनिवार्य है।


Step - 2 : -

  दोनों पछ और तीन गवाह [विवाह अधिकारी की उपस्थिति में] घोषणा पर हस्ताक्षर करते है। विवाह अधिकारी भी घोषणा को प्रतिहस्ताछरित करता है।


Step  - 3 : - 

 विवाह अधिकारी का कार्यालय या उचित दूरी के भीतर किसी जगह पर विवाह का स्थान हो सकता है।

●   विवाह पछ का चुना कोई भी फॉर्म स्वीकार किया जा सकता है। लेकिन विवाह अधिकारी की उपस्थिति में वर और वधु को ये शव्द कहना जरूरी है।  


           -:Certificate of marriage:-

विवाह का प्रमाण पत्र इस बीच विवाह अधिकारी विवाह प्रमाण पत्र पुस्तिका में अधिनियम की अनुसूचि में निर्दिष्ट रूप में एक प्रमाण पत्र दर्ज करता है। यदि दोनो पछो और तीन गवाहों द्वारा हस्ताक्षर किए जाते है। तो ऐसा प्रमाण पत्र अदालत के विवाह का निर्णायक प्रमाण है। इसलिए शादी का प्रमाण पत्र इस प्रकार है। शादी के प्रमाण पत्र में विवाह अधिकारी इसके द्वारा प्रमाणित करता हूँ। कि.................20....के.......दिन,दूल्हा और दुल्हन मेरे सामने उपस्थित हुए और उनमें से प्रेत्यक ने मेरी उपस्थिती में जिन्होंने यहां हस्ताक्षर किए है। ने धारा 11 के लिए आवश्यक घोषणाये की। और इस अधिनियम के तहत मेरी उपस्थिती में उनके बीच एक विवाह की घोषणा की गई थी।


          -:Court marriage document:-

 

●  Complete आवेदन पत्र और अनिवार्य शुल्क।

 ●  दूल्हा - दुल्हन के पासपोर्ट साइज के 4 फोटो।

 ●  पहचान पत्र।

 ●  जन्म प्रमाण पत्र या मार्कशीट 10th.

 ●   शपथ पत्र जिसमे ये सबूत हो कि दूल्हा, दूल्हन में कोई भी किसी अबैध रिस्ते में नही है।

 ●  गवाहों की फ़ोटो व पैनकार्ड।

 ●  पहचान के लिए आधारकार्ड या ड्राइविंग लाइसेंस जैसा दस्तावेज।


              -:Court marriage fees:-

एक विवाहित विवाह का पंजीकरण यह शादी करने का सबसे पसंदीदा और सबसे तेज तरीका है। यदि दोनों पक्ष [वर और वधु ] एक ही धर्म के है। या किसी एक धर्म मे परिवर्तित होने के इच्छुक है। तो उन्हें धार्मिक संस्कारों और समारोहों जैसे - कि हिन्दू विवाह , काका की उपस्थिति में निकाय आदि। के साथ विवाह करना होगा। 

और इसके लिए आपको 2000 से कम खर्च करना पडता है।

                 


   -:Some Important matter after court:-                            -:marriage:-


शादी के पहले वर्ष तलाक पर प्रतिवंध लगाया गया है। यानी विवाह का कोई भी पक्ष [लड़का/लड़की] 1 वर्ष की समय सीमा समाप्त होने से पूर्व यानी पहले तलाक हेतु। न्यायालय में याचिका नही लगा सकते है।


                    -:Divorce [तलाक]:-

यह एक कानूनी कार्यवाही द्वारा विवाह की संपत्ति है। जिसमे एक व्यक्ति द्वारा शिकायत की आवश्यकता होती है। इसका मतलब है। कि अधिकारिक तौर पर अपकी शादी खत्म हो रही है। ऐसा इसलिए किया जाता है। कि जब एक व्यक्ति दूसरे के जीवन से वाहर जाना चाहता है। तब भी उसके पास उनके साथी के जीवन की जिम्मेदारी बनी रहती है।

                

                     -:Types of Divorce:-

 

●  आपसी सहमति से तलाक : -  

                                               आपसी सहमति से तलाक तव दायर किया जा सकता है। जब पति और पत्नी काम से कम एक साल से अलग रह रहे हो। और उन्होंने अपनी शादी को खत्म करने का निर्णय किया है। उन्हें दिखाना होगा कि एक साल के दौरान वे पति - पत्नी के रूप में नही राह पाए। आपसी सहमति से तलाक तब होता है। जब पति और पत्नी दोनों शांतिपूर्ण तरीक़े से विवाह को समाप्त करने के लिए सहमत होते है।

 ●  भारत मे contested तलाक : -  

                                                  जैसा कि नाम से ही बताता है कि आपको तलाक के लिए संघर्ष करना होगा। इसमे पति - पत्नी एक समझौते पर  एक या अधिक महत्वपूर्ण मुद्दों पर अपनी शादी को समाप्त करने के लिए नही पहुँच पाते है।  तलाक तब दायर किया जाता है। जब पति - पत्नी में से कोई एक अपनी सहमति के विना तलाक लेने का फैसला करता है। यह तलाक अदालत में वकील की मदद से दायर किया जाता है। अदालत दूसरे को तलाक का नोटिस भेजती है।          


                  -:Tripal तलाक क्या है:-

मुस्लिम समाज में विना निकाह के किसी भी पुरूष और महिला के एक दूसरे के साथ रहने को गुनाह यानी अपराध माना गया है। निकाह के वाद ही कोई पुरूष किसी महिला के साथ रह सकता है। यही नही मुस्लिम समाज मे पुरुष को एक से अधिक निकाह करने की भी अनुमति है। दो परिवारो की सहमति के बाद ही निकाह होता है। लेकिन अगर निकाह के बाद कोई मतभेद हो जाए या पुरूष किसी भी वजह से अपनी पत्नी को तलाक देना चाहे तो वो : -

पति अपनी पत्नी को केवल तीन बार तलाक बोल कर उससे तलाक ले सकता था। 

मैसेज में लिख कर या फ़ोन पर भी अगर तीन बार तलाक बोल दे तो उसे भी तलाक माना जाता था।

अगर कोई कागज,चिट्ठी पर भी तीन बार तलाक लिख कर अपनी पत्नी तक पहुंचा दे। तो इसे भी तलाक कहा जाता था।

                           

                 -:भारत मे तीन तलाक:-

हमारे न्यायालय के अनुसार मुस्लिम महिला विवाह अधिकार संरक्षण विधेयक के अंतर्गत ट्रिपल तलाक पूरी तरह से असंवैधानिक है। इसीलिए इस साल ट्रिपल तलाक को पूरी तरह से वेन कर दिया गया। लेकिन मुस्लिम पर्सनल law बोर्ड हमेशा से ही ट्रिपल तलाक वेन करने से मुस्लिम पतियों को तंग किया जा रहा है। हालांकि ट्रिपल तलाक कुरान और हदीस का हिस्सा नही है। इसके बाद भी वो इसके वैन होने पर इतने परेशान है।


-:मोदी द्वारा बनाये गए नए तीन तलाक कानून के अनुसार : -  


● अगर कोई पति अपनी पत्नी को किसी भी माध्य्म या सामने से तीन तलाक देता है। तो पुलिस उसे विना किसी वॉरन्ट के जेल में डाल सकती है। मोबाइल या किसी अन्य तरीके से अपनी पत्नी को तीन तलाक देना मान्य नही होगा।

● केवल मजिस्ट्रेट कोर्ट से ही आरोपी को जमानत मिलेंगी। लेकिन मजिस्ट्रेट भी पीड़ित महिला के पक्ष को सुने विना पति को जमानत नही दे सकते। 

●  तीन तलाक की शिकायत खुद महिला या इसका कोई करिवी रिश्तेदार कर सकता है।

●  तलाक होने की सूरत में पति से पत्नी को कितना गुज़ारा भत्ता दिया जाएगा। यह भी मजिस्ट्रेट ही तय करेंगे।

●  तीन तलाक देने पर नाबालिग बच्चे अपनी माँ के पास रहेंगे।

●  अगर पत्नी मजिस्ट्रेट से अनुरोध करे। तभी पति - पत्नी के बीच समझोता हो सकता है।

●   कोई पड़ोसी या अन्य व्यक्ति इसके बारे में शिकायत दर्ज नही करा सकता।

केंद्र सरकार ने तीन तलाक से जुड़े बिल को लोकसभा और राज्यसभा में पास करवा लिया है। और इस साल इसे राष्ट्रपति की मंजूरी के साथ ही यह बिल कानून बना। यह कानून बनने से 19 सितंबर 2018 के बाद तीन तलाक से जुड़े हुए जितने भी मामले आये है। उन सभी का निपटारा इसी कानून के अधीन किया जाएगा।।


                     [Next part - 2]

 

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